क्या है जल्लीकट्टू महोत्सव और क्यों इसे प्रतिबंधित किया गया है?
पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु का मशहूर सांड दौड़ यानी “जल्लिकट्टू महोत्सव” राष्ट्रीय सुर्खियों में छाया हुआ है| सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर रोक लगा दी है जिसके विरोध स्वरूप पूरे तमिलनाडु में प्रदर्शनों का दौर जारी है। चेन्नई के मरीना बीच पर हजारों की तादाद में लोग जमा हैं और मांग कर रहे हैं कि पोंगल के मौके पर होने वाले जल्लीकट्टू खेल पर सुप्रीम कोर्ट ने जो प्रतिबंध लगाया है, उसे जल्द-से-जल्द हटाया जाए| ऐसे में यह प्रश्न लाजमी है कि आखिर जल्लीकट्टू खेल क्या है और इसका मतलब क्या होता है? इस लेख में हम “जल्लीकट्टू” का अर्थ और “जल्लीकट्टू महोत्सव” के इतिहास और इससे जुड़े विवाद का विवरण दे रहे हैं|
“जल्लीकट्टू” शब्द का अर्थ
तमिल भाषाविदों के अनुसार “जल्ली” शब्द दरअसल “सल्ली” से बना है जिसका अर्थ “सिक्का” और कट्टू का अर्थ “बांधा हुआ” है| दरअसल “जल्लीकट्टू” सांडों का खेल है जिसमें उसके सींग पर कपड़ा बांधा जाता है और जो खिलाड़ी सांड के सींग पर बांधे हुए इस कपड़े को निकाल लेता है उसे ईनाम के रूप में सिक्के या पैसे मिलते हैं| इसलिए इस खेल को जल्लीकट्टू के नाम से जाना जाता है| इसके अलावा इस खेल में प्रतिभागी सांड के कूबड़ से लटकने का प्रयास करते हैं और जो प्रतिभागी सबसे अधिक समय तक कूबड़ को पकड़ कर लटका रहता है उसे विजेता घोषित किया जाता है| प्राचीन तमिल संगम में “जल्लीकट्टू” को “एरूथाजहूवुथल” नाम से वर्णित किया गया है जिसका अर्थ "सांड को गले लगाना" है| साथ ही इसे “मंजू विराट्टू” नाम से भी वर्णित किया गया है जिसका अर्थ “सांड का पीछा करना” है|
“जल्लीकट्टू” का इतिहास”
ऐसा माना जाता है कि “जल्लीकट्टू” खेल की शुरूआत तमिल शास्त्रीय काल अर्थात 400-100 ई. पू. के दौरान हुआ था| यह खेल प्राचीन “अय्यर” लोग जो प्राचीन तमिल प्रदेश की “मुल्लै” नामक भाग में रहते थे, के बीच काफी प्रचलित था| सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त एक मुहर में इस खेल का चित्र अंकित है, जिसे राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संरक्षित रखा गया है। मदुरै के निकट लगभग 2500 साल पुरानी सफेद चीनी मिट्टी से निर्मित एक गुफाचित्र (cave painting) की खोज गई है जिसमें एक सांड को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे एक व्यक्ति का चित्र अंकित है|
“जल्लीकट्टू” के प्रकार
“जल्लीकट्टू” महोत्सव के अंतर्गत तीन तरह के खेल का आयोजन किया जाता है:
1. वती विराट्टू: इस खेल में एक सांड को एक बाड़े में छोड़ दिया जाता है और एक निश्चित दूरी और समय में उसे पकड़ने वाले को पुरस्कार दिया जाता है|
2. वेली विराट्टू: इस खेल में एक सांड को खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है और सांड को वश में करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाता है|
3. वातं मंजूविराट्टू: इस खेल में सांड को एक 50 फुट लंबी रस्सी (15 मीटर) से बांधा जाता है और प्रतिभागियों की टीम को एक विशेष समय के भीतर सांड को वश में करना होता है|
जल्लीकट्टू महोत्सव आम तौर पर पोंगल त्योहार के अवसर पर “मट्टू पोंगल के दिन” आयोजित किया जाता है| यह त्योहार तमिलनाडु के अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में भी प्रसिद्ध है|
सिखों का प्रमुख त्योहार “गुरू नानक गुरूपर्व”
“जल्लीकट्टू” महोत्सव पर रोक लगाने के कारण
दरअसल इस महोत्सव को लेकर एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें दिखाया गया था कि महोत्सव से पहले सांडो को शराब पिलाई जाती है। साथ ही दौड़ शुरू होने से पहले सांडो को बुरी तरह से मारा जाता है जिसके कारण जब दौड़ शुरू होती है तो वो गुस्से में बेतहाशा दौड़ते हैं।
इस वीडियों को संज्ञान में लेते हुए “एनीमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया”, “पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स (पेटा) इंडिया और बैंगलोर के एक एनजीओ ने इस दौड़ को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी|
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 2014 को “जल्लीकट्टू महोत्सव” पर रोक लगा दी थी और साथ ही यह आदेश भी जारी की थी कि रोक केवल तामिलनाडु में ही नहीं बल्कि पूरे देश में लागू होगी। लेकिन केन्द्र सरकार ने 7 जनवरी, 2017 को इस विवादित “जल्लीकट्टू” महोत्सव से रोक हटा दी थी जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को केन्द्र सरकार के निर्णय पर स्टे लगा दिया है और एक हफ्ते के भीतर तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केन्द्र सरकार से इस संबंध में जवाब मांगा है।
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क्या है जल्लीकट्टू महोत्सव और क्यों इसे प्रतिबंधित किया गया है?
Jan 20, 2017 17:05 ISTNikhilesh Mishra
पिछले कुछ दिनों से तमिलनाडु का मशहूर सांड दौड़ यानी “जल्लिकट्टू महोत्सव” राष्ट्रीय सुर्खियों में छाया हुआ है| सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर रोक लगा दी है जिसके विरोध स्वरूप पूरे तमिलनाडु में प्रदर्शनों का दौर जारी है। चेन्नई के मरीना बीच पर हजारों की तादाद में लोग जमा हैं और मांग कर रहे हैं कि पोंगल के मौके पर होने वाले जल्लीकट्टू खेल पर सुप्रीम कोर्ट ने जो प्रतिबंध लगाया है, उसे जल्द-से-जल्द हटाया जाए| ऐसे में यह प्रश्न लाजमी है कि आखिर जल्लीकट्टू खेल क्या है और इसका मतलब क्या होता है? इस लेख में हम “जल्लीकट्टू” का अर्थ और “जल्लीकट्टू महोत्सव” के इतिहास और इससे जुड़े विवाद का विवरण दे रहे हैं|
“जल्लीकट्टू” शब्द का अर्थ
तमिल भाषाविदों के अनुसार “जल्ली” शब्द दरअसल “सल्ली” से बना है जिसका अर्थ “सिक्का” और कट्टू का अर्थ “बांधा हुआ” है| दरअसल “जल्लीकट्टू” सांडों का खेल है जिसमें उसके सींग पर कपड़ा बांधा जाता है और जो खिलाड़ी सांड के सींग पर बांधे हुए इस कपड़े को निकाल लेता है उसे ईनाम के रूप में सिक्के या पैसे मिलते हैं| इसलिए इस खेल को जल्लीकट्टू के नाम से जाना जाता है| इसके अलावा इस खेल में प्रतिभागी सांड के कूबड़ से लटकने का प्रयास करते हैं और जो प्रतिभागी सबसे अधिक समय तक कूबड़ को पकड़ कर लटका रहता है उसे विजेता घोषित किया जाता है| प्राचीन तमिल संगम में “जल्लीकट्टू” को “एरूथाजहूवुथल” नाम से वर्णित किया गया है जिसका अर्थ "सांड को गले लगाना" है| साथ ही इसे “मंजू विराट्टू” नाम से भी वर्णित किया गया है जिसका अर्थ “सांड का पीछा करना” है|
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“जल्लीकट्टू” का इतिहास”
ऐसा माना जाता है कि “जल्लीकट्टू” खेल की शुरूआत तमिल शास्त्रीय काल अर्थात 400-100 ई. पू. के दौरान हुआ था| यह खेल प्राचीन “अय्यर” लोग जो प्राचीन तमिल प्रदेश की “मुल्लै” नामक भाग में रहते थे, के बीच काफी प्रचलित था| सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त एक मुहर में इस खेल का चित्र अंकित है, जिसे राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संरक्षित रखा गया है। मदुरै के निकट लगभग 2500 साल पुरानी सफेद चीनी मिट्टी से निर्मित एक गुफाचित्र (cave painting) की खोज गई है जिसमें एक सांड को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे एक व्यक्ति का चित्र अंकित है|
“जल्लीकट्टू” के प्रकार
“जल्लीकट्टू” महोत्सव के अंतर्गत तीन तरह के खेल का आयोजन किया जाता है:
1. वती विराट्टू: इस खेल में एक सांड को एक बाड़े में छोड़ दिया जाता है और एक निश्चित दूरी और समय में उसे पकड़ने वाले को पुरस्कार दिया जाता है|
2. वेली विराट्टू: इस खेल में एक सांड को खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है और सांड को वश में करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाता है|
3. वातं मंजूविराट्टू: इस खेल में सांड को एक 50 फुट लंबी रस्सी (15 मीटर) से बांधा जाता है और प्रतिभागियों की टीम को एक विशेष समय के भीतर सांड को वश में करना होता है|
जल्लीकट्टू महोत्सव आम तौर पर पोंगल त्योहार के अवसर पर “मट्टू पोंगल के दिन” आयोजित किया जाता है| यह त्योहार तमिलनाडु के अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में भी प्रसिद्ध है|
सिखों का प्रमुख त्योहार “गुरू नानक गुरूपर्व”
“जल्लीकट्टू” महोत्सव पर रोक लगाने के कारण
दरअसल इस महोत्सव को लेकर एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें दिखाया गया था कि महोत्सव से पहले सांडो को शराब पिलाई जाती है। साथ ही दौड़ शुरू होने से पहले सांडो को बुरी तरह से मारा जाता है जिसके कारण जब दौड़ शुरू होती है तो वो गुस्से में बेतहाशा दौड़ते हैं।
इस वीडियों को संज्ञान में लेते हुए “एनीमल वेल्फेयर बोर्ड ऑफ इंडिया”, “पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स (पेटा) इंडिया और बैंगलोर के एक एनजीओ ने इस दौड़ को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी|
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई 2014 को “जल्लीकट्टू महोत्सव” पर रोक लगा दी थी और साथ ही यह आदेश भी जारी की थी कि रोक केवल तामिलनाडु में ही नहीं बल्कि पूरे देश में लागू होगी। लेकिन केन्द्र सरकार ने 7 जनवरी, 2017 को इस विवादित “जल्लीकट्टू” महोत्सव से रोक हटा दी थी जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को केन्द्र सरकार के निर्णय पर स्टे लगा दिया है और एक हफ्ते के भीतर तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केन्द्र सरकार से इस संबंध में जवाब मांगा है।
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